34 साल की उम्र में बने मुख्यमंत्री, शेर-ए-दिल्ली का नाम मिला

सरकारी बस में सफर कर लोगों की समस्या सुनते थे; कहानी दिल्ली के पहले CM की

अविभाजित पंजाब (आज का हरियाणा) के रेवाड़ी में रहने वाला एक परिवार केन्या चला गया। 16 जून 1918 को केन्या की राजधानी नैरोबी में उनके घर एक लड़के का जन्म हुआ। नाम रखा ब्रह्म प्रकाश। 1931 में उनका परिवार भारत लौट कर दिल्ली के शकूरपुर गांव में रहने लगा। ब्रह्म प्रकाश की आगे की पढ़ाई दिल्ली में ही हुई। 

1940 के दशक में ब्रह्म प्रकाश गांधी जी से प्रभावित हो कर स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े। इस दौरान कई बार जेल गए। 1952 में दिल्ली के नांगलोई से चुनाव लड़े और विधायक बने। फिर दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री बने, लेकिन अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए।  

प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और गृह मंत्री गोविंद वल्लभ पंत से तनातनी के चलते 1955 में ही इस्तीफा देना पड़ा जिसके बाद विधानसभा अध्यक्ष गुरुमुख निहाल सिंह को मुख्यमंत्री बनाया गया। इनका डेढ़ साल का कार्यकाल रहा। इस दौरान उन्होंने दिल्ली में पहली बार शराबबंदी लागू की। नेहरु के चिट्ठी के बाद भी शराबबंदी के नियम में कोई बदलाव नहीं हुए। बाद में केंद्र सरकार द्वारा राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिस लागू करने के बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। 

कहानी दिल्ली के दो मुख्यमंत्रियों की…

स्वतंत्रता आंदोलन में लिया हिस्सा, जेल भी गए 

22 साल के चौधरी ब्रह्म प्रकाश ने 1940 में महात्मा गांधी के ‘व्यक्तिगत सत्याग्रह’ आंदोलन से जुड़कर ब्रिटिश हुकूमत का अहिंसक तरीके से विरोध किया। 1942 में गांधी जी के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में वे दिल्ली के भूमिगत/प्रमुख नेताओं में भी शामिल थे। जिसके चलते उन्हें जेल भी जाना पड़ा। 

दिल्ली आर्काइव्ज के मुताबिक उन्हें 6 मई 1943 को 2 साल की सजा सुनाई गई। शुरुआत में दिल्ली सेंट्रल जेल में बंद रहे। ऐसे भी सबूत हैं की ब्रह्म प्रकाश ने जेल में रहते हुए जेल में अपने सामाजिक स्तर का हवाला देते हुए बेहतर श्रेणी के कैदी की तरह व्यवहार की मांग की थी। जिसके बाद उन्हें फिरोजपुर जेल भेज दिया गया। 

1943 में वे जेल से तो छूट गए लेकिन उनपर कई सारी पाबंदियां लगा दी गईं। पाबंदियां न मानने के जुर्म में अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें वापस जेल में डाल दिया। फिर वे लगातार आंदोलनों से जुड़े रहे। अपने तेज तर्रार व्यवहार के चलते गांधी और नेहरू की नजर में आ गए। 

मार्च 1952 में बने मुख्यमंत्री, पर कार्यकाल पूरा नहीं किया 

आजादी के बाद फरवरी 1952 में दिल्ली के विधानसभा चुनाव हुए। उस समय दिल्ली सी स्टेट था। चौधरी ब्रह्म प्रकाश नांगलोई विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े। उन्होंने अपने निकटतम सोशलिस्ट पार्टी के प्रतिद्वंदी बलवीर सिंह को 4,517 वोट से हरा दिया। उस समय ब्रह्म प्रकाश ने नांगलोई की जनता का करीब 70 प्रतिशत मत हासिल किया था। नेहरू की पसंद के चलते विधायक दल के नेता चुने गए और 17 मार्च 1952 को दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली।    

कई मीडिया रिपोर्ट्स में दावा है कि ब्रह्म प्रकाश इत्तेफाक से सीएम बने। उनकी जगह दिल्ली के कद्दावर नेता देशबंधु गुप्ता सीएम बनने वाले थे पर हवाई दुर्घटना में मौत हो जाने के कारण आनन-फानन में चौधरी ब्रह्म प्रकाश को सीएम बनाया गया। जबकि यह एक अपवाद है क्योंकि गुप्ता की मौत नवंबर 1951 हो गई थी, और दिल्ली के चुनाव फरवरी 1952 में हुए थे।  

पूर्ण राज्य का दर्जा चाहते थे, नेहरू नहीं थे राजी 

दिल्ली को राज्य अधिनियम 1951 के पार्ट सी के तहत राज्य बनाया गया था। इसके मुताबिक मुख्य आयुक्त राज्य के मुखिया हुआ करते थे। मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद उनके दैनिक कामकाज में सहायता और सलाह देते थे। जबकि ब्रह्म प्रकाश चाहते थे उन्हें और अधिक स्वायत्तता मिले। अभी प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू इस पर राजी नहीं थे। 

इसे लेकर दोनों में मनमुटाव था साथ ही तत्कालीन गृहमंत्री गोविंद बल्लभ पंत का दिल्ली में सीधा दखल रहता था। इस कारण दोनों में तनातनी रहने लगी थी। इसके चलते उन्होंने 12 फरवरी 1955 को अपना इस्तीफा दे दिया। फिर विधानसभा अध्यक्ष गुरुमुख निहाल सिंह को विधायक दल का नेता चुना गया। 

मुख्यमंत्री बदलने को लेकर और भी दावे किए जाते हैं। जानकारों का कहना है कि तत्कालीन मुख्य आयुक्त और नेहरू के करीबी अधिकारियों में से एक आनंद पंडित से अनबन होने पर भी नेहरू नाराज थे। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 1955 में गुड़ घोटाले के सामने आने का भी ब्रह्म प्रकाश पर दवाब था।   

शेर-ए-दिल्ली कहते थे लोग/अपना खुद का घर भी नहीं था दिल्ली में  

चौधरी ब्रह्म प्रकाश के सख्त रवैये के चलते दिल्ली के लोग उन्हें शेर-ए-दिल्ली कहने लगे थे। उनकी सादगी और सहजता ऐसी थी की वो अपने सरकारी वाहन की जगह बस में सफर किया करते थे। सफर करते हुए लोगों की समस्या सुन निराकरण किया करते। 

चौधरी ब्रह्म प्रकाश दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे, 4 बार सांसद रहे, केंद्रीय कृषि मंत्री रहे पर जानकार बताते हैं की ब्रह्म प्रकाश का दिल्ली में खुदका घर भी नहीं था। जब उनसे इस बारे में सवाल किया जाता था तो उनका कहना था ये पूरी दिल्ली ही उनका घर है। 

लोकसभा चुनाव में एक बार मिली थी हार

1956 राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिश पर दिल्ली विधानसभा भंग कर दी गई। जिसके बाद 1993 तक दिल्ली में विधानसभा चुनाव नहीं हुए। कांग्रेस पार्टी जानती थी चौधरी ब्रह्म प्रकाश दिल्ली के कद्दावर नेता हैं। 

भले ही पार्टी ने उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटा दिया था पर 1957 में उन्हें सदर लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ाया गया और वे सांसद चुने गए।  इसके बाद वे 3 बार बाहरी दिल्ली लोकसभा क्षेत्र से सांसद रहे। 

1977 में आपातकाल के दौरान कांग्रेस से मतभेद के चलते उन्होंने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी। 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़े और सांसद चुने गए। 1979 में जनता दल में हुई टूट के बाद वे चौधरी चरण सिंह के गुट के साथ चले गए और केंद्र में मंत्री बनाए गए। हालांकि 1980 के आम चुनाव में वे कांग्रेस के उम्मीदवार सज्जन कुमार से चुनाव हार गए थे। 

11 अगस्त 1993 में चौधरी ब्रह्म प्रकाश की मौत हो गई। जानकर इसे भी संयोग मानते हैं की ब्रह्म प्रकाश ने दिल्ली के विधायी अधिकार की लड़ाई लड़ी और 41 साल बाद 1993 में ही दिल्ली विधानसभा वापस अपने अस्तित्व में आई।  

2001 में भारत सरकार ने चौधरी ब्रह्म प्रकाश की स्मृति में डाक टिकट जारी किया था। उनके नाम पर दक्षिण-पश्चिम दिल्ली में सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज और चौधरी ब्रह्म प्रकाश आयुर्वेद चरक संस्थान भी है।  

एक नजर 1952 में हुए दिल्ली चुनाव पर 

दिल्ली में पहला विधानसभा चुनाव मार्च 1952 को हुआ था। तब असेंबली में 48 सीटें हुआ करती थीं। 36 विधानसभा क्षेत्र ऐसे थे जहां से एक-एक विधायक चुने गए लेकिन 6 विधानसभा क्षेत्र ऐसे भी थे जहां से एक नहीं, बल्कि 2-2 विधायक चुने गए थे। चुनाव में कांग्रेस ने 39 सीटों पर जीत दर्ज कर बहुमत हासिल किया। भारतीय जन संघ ने 5, सोशलिस्ट पार्टी ने 2, हिंदू महासभा और निर्दलीय ने 1-1 सीटों पर जीत हासिल की थी।

अब बात दिल्ली के दूसरे सीएम गुरूमुख निहाल सिंह की

चौधरी ब्रह्म प्रकाश के इस्तीफे के बाद गुरुमुख निहाल सिंह को विधायक दल का नेता चुना गया। उन्होंने 13 फरवरी 1955 को दिल्ली के दूसरे सीएम के रूप में शपथ ली। गुरूमुख निहाल सिंह का जन्म 14 मार्च 1895 को अविभाजित पंजाब में हुआ था। उन्होंने लंदन यूनिवर्सिटी से बी.एस.सी. इकोनॉमिक्स की पढ़ाई की।  

राजनीति में आने से पहले प्रोफेसर थे गुरुमुख 

राजस्थान के राजभवन से मिली जानकारी के मुताबिक साल 1920 में वह काशी विश्वविद्यालय में इकोनॉमिक्स और पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर बने। इसके बाद 1939 से 43 तक अहमदाबाद में और फिर 1943 से 49 तक दिल्ली के रामजस कॉलेज के प्रोफेसर रहे। साल 1950 में वह दिल्ली के ही श्रीराम कॉलेज के प्रिंसिपल भी बने।

गृह मंत्री की पसंद थे गुरुमुख

गुरुमुख निहाल सिंह के सीएम बनने के पीछे कई कारण थे। मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो उनके तत्कालीन गृह मंत्री गोविंद बल्लभ पंत से अच्छे संबंध थे। लखनऊ, दिल्ली, काशी समेत देश के कई यूनिवर्सिटी में गुरुमुख निहाल सिंह प्रोफेसर समेत कई बड़े पदों पर भी रहे।साथ ही उन्होंने कई किताबें भी लिखी। पंत को लगा गुरुमुख निहाल सिंह की एजुकेशन क्वॉलिफिकेशन का फायदा पार्टी को मिलेगा।

पंत के ही कहने पर उन्हें 1952 का दिल्ली विधानसभा चुनाव लड़ाया गया था। वे दरियागंज विधानसभा सीट से महज 555 वोट के अंतर से चुनाव से जीते थे। गुरुमुख 1 नवंबर 1956 से  15 अप्रैल 1962 तक राजस्थान के पहले राज्यपाल रहे।

दिल्ली में कराई शराबबंदी, नेहरू को लिखनी पड़ी चिठ्ठी 

मुख्यमंत्री बनने के बाद गुरूमुख निहाल सिंह ने दिल्ली में पहली बार शराबबंदी कराई।  गुरूमुख के बेटे सुरेंद्र निहाल सिंह ने अपनी किताब ‘Ink In My Veins’ में लिखते हैं, शराबबंदी के फैसले के खिलाफ कांग्रेस पार्टी के नेताओं-कार्यकर्ताओं ने नाराजगी जताई। पार्टी के अंदरखाने मुख्यमंत्री के इस फैसले का विरोध होने लगा। यहां तक की स्वास्थ्य मंत्री ने इसकी शिकायत नेहरू से की, जिसके बाद उन्होंने 26 जुलाई 1956 को गुरुमुख निहाल सिंह को एक चिट्ठी लिखी। नेहरू लिखते हैं-

“दिल्ली में शराबबंदी के बारे में हमें स्वास्थ्य मंत्री राजकुमारी अमृत कौर ने जानकारी दी है। मैं चाहता हूं कि शराबबंदी लागू रहे, लेकिन मुझे इससे एक और खतरे का डर है। ऐसा होने से अवैध शराब बनाने और तस्करी करने वालों की संख्या बढ़ सकती है। ये एक बीमारी से ज्यादा खतरनाक स्थिति है। स्वास्थ्य मंत्री राजकुमारी अमृत कौर के मुताबिक कुछ जगहों पर अवैध शराब बनाने की कोशिश भी की जा रही है। मैं आशा करता हूं कि दिल्ली सरकार सभी पहलूओं का जरूर ध्यान रखेगी।”

‘Ink in my veins’ किताब के मुताबिक नेहरू की चिट्ठी के बाद भी मुख्यमंत्री गुरुमुख निहाल सिंह अपने फैसले से नहीं पलटे। उन्होंने शराबबंदी को जारी रखा। शराबबंदी और नेहरू की चिट्ठी के बाद पार्टी दो खेमे में बंट चुकी थी। कांग्रेस नेता मोरारजी देसाई शराबबंदी के पक्ष में थे। 

गुरुमुख निहाल सिंह करीब 20 महीनों तक दिल्ली के सीएम रहे। राज्य राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिश लागू होने के बाद दिल्ली ‘सी स्टेट’ से केंद्र शासित प्रदेश में तब्दील हो गया। इस फैसले के बाद दिल्ली विधानसभा भंग हो गई और 31 अक्टूबर 1956 को गुरूमुख निहाल सिंह को मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा। केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद दिल्ली में प्रशासनिक व्यवस्था का जिम्मा चीफ कमिश्नर ने संभाला। उस दौर में दिल्ली में उपराज्यपाल की जगह चीफ कमिश्नर हुआ करते थे। इसमें चीफ कमिश्नर लोक सेवा आयोग के अधिकारी बनाए जाते थे। इसके बाद करीब 1992 तक दिल्ली में केंद्र सरकार का शासन रहा। ऐसे में गुरूमुख सिंह के बाद 37 साल तक दिल्ली का कोई भी सीएम नहीं रहा।

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