धर्म की खातिर कृष्ण बने स्वयं यहां पर सारथी
आरती यह आरती मां भारती की आरती
पावन गंगा का नीर यहां
जो हर दे सारी पीर यहां
वाणिज्य कला विज्ञान यहां
है धर्म संस्कृति का ज्ञान यहां
वेदों की अमृतवाणी हर एक मनुज को तारती
आरती यह आरती मां भारती की आरती
कहीं सूर्य तो कहीं स्वर्ण का मंदिर
कहीं गुफाएं कहीं महल है स्थिर
कहीं अशोक का है सांची
तो कहीं अवध और काशी
खजुराहो की कलाकृति को दुनिया रही निहारती
आरती यह आरती मां भारती की आरती
तुलसी आंगन की शान यहां
हैं कण कण में भगवान यहां
है ऋषि-मुनियों का वास यहां
है वीरों का इतिहास यहां
राष्ट्र की खातिर माता पन्ना स्वयं पुत्र को वारतीं
आरती यह आरती मां भारती की आरती
लेखक – सुमित सिंह (विदिशा)