भारत की आध्यात्मिक चेतनाओं ने आज पूरे विश्व को नवीन दिशा दी है।सम्पूर्ण विश्व को अपना मानने वाली हमारी महान सनातन सँस्कृति का अपना गौरवशाली इतिहास रहा है।वर्तमान के व्यवसायिक युग मे पाश्चात्य परम्पराओ के प्रायोजित दौर में भी हमारी संस्कृति व परम्पराओ ने हमें अपने मूल में बाँधे रखा।विदेशी आक्रांताओं के बाद भी देश में विधर्मियों द्वारा पोषित संगठनो द्वारा हिन्दू त्यौहारो, परंपराओ के स्थान पर पाश्चातय परंपराओ से जुड़े नए त्योहारों का षड्यंत्रपूर्वक चलन शुरू किया गया।भारतीय त्यौहारो पर जल संरक्षण, पर्यावरण संरक्षण आदि का अभियान भी इसी षड्यंत्र का हिस्सा रहा है।जिसे पश्चिमी मीडिया जोर शौर से विज्ञापनों व अन्य माध्यमो से प्रचारित करता है।हालांकि बाजारवाद से प्रभावित हो कर युवाओ का एक बड़ा वर्ग भारतीय पर्वों व त्यौहार से दूर जरूर हुआ परन्तु बीते कुछ वर्षों में घटित मजहबी उन्माद ने हमे सोंचने पर मजबूर कर दिया।आज के परिदृश्य की बात की जाए तो भारतीय समाज मे एक सकारात्मक परिवर्तन की लहर आई है। परिणामस्वरूप देश का युवा अपनी मूल परम्पराओ की और लौटने लगा है।वैसे भी हमारे त्यौहार का वैज्ञानिक दृष्टिकोण होता है।हमारा नववर्ष भी अपने विशेषताओं के लिए जाना जाता है। अब भारतीय नववर्ष के वैज्ञानिक दृष्टिकोण को संसार मानने लगा है।हमारा नववर्ष यानी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा,जिसे युगादि तिथी भी कहा जाता है।इसी दिन से आदि शक्ति की आराधना आरम्भ होती है।जप,तप,संयम के साथ नववर्ष आरम्भ होता है। पंचाग रचना का भी यही दिन माना जाता है।चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को ही सृष्टि की रचना हुई थी।यह दिन धार्मिक ऋतियो के साथ ही वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी सर्वाधिक उपयुक्त है।फाल्गुनी बयार का अलग ही अहसास होता है।भारतीय नववर्ष के आगमन की अनुभूति भी प्रकृति स्वयं करा देती है।नववर्ष के पूर्व से ही फाल्गुन की बयार व वृक्षो की नवकोपल व सुगन्धित पुष्पो से प्रकृति का श्रंगार होता है।यह दिन अपने आप मे इतिहास की महत्वपूर्ण घटनाओं का भी साक्षी रहा है।हिन्दू नववर्ष का पंचांग विक्रम संवत् से माना जाता है।वर्षप्रतिपदा आगामी 22 मार्च को मनाई जाएगी।
वर्तमान समय मे पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव के कारण भले ही अँग्रेजीयत की गूंज हो परन्तु
भारतीय पर्व व संस्कार आज भी विक्रम सम्वन्त की तिथिनुसार ही सम्पन्न होते है।भारत की सांस्कृतिक पहचान भी विक्रम संवन्त के साथ जुड़ी हुई है।यह नल नामक नव संवत्सर 2080 रहेगा।आज भी हम अपने पर्व,उत्सव,त्यौहार के साथ महापुरुषों की जयंती भी भारतीय कालगणना के अनुसार ही मनाते है।इसलिए पाश्चात्य विचारों को अंगीकार कर चूंकि हमारी वर्तमान पीढ़ी को अपने गौरवशाली इतिहास को पहचानना होगा।भारतीय नववर्ष हमारी संस्कृति का ध्वजवाहक व राष्ट्राभिमान का प्रतीक है।हमारी पहचान भी अंग्रेजी नववर्ष से न होकर के विक्रम संवत्सर से ही है।इसीलिए हम नववर्ष की बैला पर देव आराधना के साथ ऐतिहासिक तथ्यों की जानकारी समाज मे प्रसारित कर भारतीय नववर्ष सहित सभी त्यौहार व परम्पराओ को उत्साह के साथ मनाना चाहिए।यह परम्पराए व हमारा गौरवशाली सम्रद्ध इतिहास ही हमारी सांस्कृतिक विरासत है।
लेखक –
सोमेश उपाध्याय